अरोडवंश का इतिहास

भाग-1
भविष्‍य पुराण के जिस श्‍लोक के अनुसार अरोड वंशी अपने को त्रेतायुग में हुए महाराज श्री अरूट का वंशज मानते हैं , वह इस प्रकार है ……
‘नाग वंशोद्या दिब्‍या, क्षत्रियास्‍म सुदाहता।
ब्रह्म वंशोदयवाश्‍चान्‍ये, तथा अरूट वंश संभवा।।’
(भविष्‍यपुराण , जगत प्रसंग अध्‍याय 15)
अर्थात् नागवंश में होनेवाले , वैसे ही ब्रह्म वंश में होनेवाले तथा अरूट वंश में होनेवाले श्रेष्‍ठ क्षत्रिय कहलाए।
त्रेता युग में श्री परशुराम से सम्‍मानपूर्वक अभयदान पाकर सूर्यवंशी क्षत्रिय श्री अरूट ने सिंधु नदी के किनारे एक किला बनाकर उसका नाम अरूट कोट रखा , जिसे समयानुसार अरोड कोट कहा जाने लगा। महाराजा अरूट के साथी और वंशज ही अरोडा कहलाएं।
सिकंदर को भी महाराजा अरूट के वंशजों से लडना पडा था। इतिहास लेखक प्लिनी ने भी अरोडों को अरोटुरी लिखा है।कालांतर में अरोड राज्‍य की गद्दी देवाजी ब्राह्मण के हाथ में आ गयी । देवा जी ब्राह्मण के वंशज बौद्ध थे और उनकी राजधानी सिंधु नदी के पूर्वी किनारे पर अलोर या अरोड कोर्ट ही थी, जिसे आजकल रोडी कहते हैं। अरबों के आक्रमण के समय अरोड कोट के अंतिम राजा दाहर बडे प्रतापी थे। उनके शासनकाल में अरब आक्रमणकारियों ने समुद्र मार्ग से कई हमले किए थे, जिन्‍हे विफल किया जाता रहा। मुहम्‍मद बिन कासिम के आक्रमण के समय आपसी फूट के कारण अरोड कोट हमलावरों के हाथ में चला गया। इस भगदड में अरोडवंशियो का एक दल उत्‍तर दिशा की ओर गया , वह उत्‍तराधा कहलाया। दक्षिण दिशा को जानेवाला दक्षिणणाधा और पश्चिम दिशा को जानेवाला दाहिरा कहलाया। इसके बाद अरोड वंशियों ने व्‍यापार और खेती को जीवन निर्वाह का मुख्‍य साधन बनाया।

भाग-२
अरोड शब्‍द की व्‍याख्‍या के अनुसार अरोड प्रांत के राजा या क्षत्रिय अरोडा कहलाए। इतिहासकार टॉड की राय है कि अरोडनगर सिंधु नदी के किनारे पर वर्तमान रोडी या अरोडी नगर से पांच मील पूर्व की ओर था। सिंधु नदी किसी समय में अरोड नगर के नीचे बहा करती थी।
लाहौर विश्‍वविद्यालय के पुस्‍तकालय में मौजूद फारसी में लिखी दो हस्‍त लिखित पुस्‍तक के आधार पर बताया जाता है कि अरोड सिंध की राजधानी थी। अरबों के आक्रमण के बाद आठवीं शताब्‍दी के प्रारंभ में अरोडा सिंधु नदी के किनारे किनारे उत्‍तर की ओर बढते गए , जहां उन्‍हें उचित स्‍थान मिला , वहां बसते गए तथा जो व्‍यवसाय धंधे मिलते गए , उसे अपनाते गए।
करीब तीन सौ वर्ष बाद जब पंजाब में आक्रमण हुए तो अनेक अरोडवंशी सिंध की ओर लौटे। वहां उन्‍होने स्‍वयं को लोहा वरणा या लोहावर कहा। धरे धीरे उच्‍चारण भेद से वे लोहाणे कहलाने लगे। आजकल भी लोहाणे में जो गीत गाए जाते हैं , वे लाहौर की ओर ही इशारा करते हैं।
अरोडवंशियों की दिशांतर भेदों के अलावा धीरे धीरे स्‍थान और पूर्वजों के आधार पर भी अनेक शाखाएं हो गयी , जैसा कि उनके सैकडों अल्‍लों से पता चलता है। अरोड वंश के अल्‍लों की चर्चा भी इसी कडी में आगे की जाएगी। अरोडवंशी स्‍वयं को काश्‍यप गोत्र के क्षत्रिय मानते हैं।
भाग-३
ग्‍यारहवीं शताब्‍दी के प्रारंभ में जब पंजाब पर विदेशी आक्रमण हुए , तो कुछ अरोडवंशी राजस्‍थान की ओर भी चले गए। चिरकाल तक उनका संबंध पंजाबी अरोडवंशियों के साथ बना रहा। इस बात के अनेक प्रमाण मिलते हैं कि राजस्‍थान के अरोडवंशी पंजाब से होकर ही राजपूताने में बसे थे। कुछ हस्‍तलिखित ग्रंथों से इस बात के प्रमाण भी मिलते हैं। अरोडवंशी खत्रियों द्वारा बनवाया हुआ श्री दरियाब देव जी का मंदिर श्री पुष्‍कर राज में विद्यमान है। इसके अतिरिक्‍त जिन बडे कस्‍बों और नगरों में अरोडवंशी बिरादरी के घर अधिक हैं, वहां भी श्री दरियादेव जी के मंदिर स्‍थापित हैं। राजस्‍थान में अरोडवंशी खत्रियों की 84 अल्‍ले हैं।राजपूताना निवासी अरोडवंशियों में उत्‍तराधी , दरबने , डाहरे आदि भेदों का कोई समुदाय नहीं है। अधिकांश लोग इन भेदों से अनभिज्ञ भी हैं। लोगों के रीति रिवाजों को देखने पर राजस्‍थान के अरोडा दरबने प्रतीत होते हैं। राजस्‍थान के अरोडों में ज्‍यादातर व्‍यापार में ही लगे हैं। इस शताब्‍दी के प्रारंभ में राजस्‍थान के अरोडा समुदाय में एक विधवा के विवाह को लेकर फूट पड गयी और पूरी बिरादरी दो दलों में बंट गयी। यह दलबंदी अब भी देखने में आती है। एक दल का नाम जोधपुरी अरोडा खत्री तथा दूसरे दल वाले नागौरी अरोडा खत्री कहलाते हैं।

भाग-४
सिंध के नसरपुर शहर में अरोडवंशी ठक्‍कर भक्‍त रतन राय के घर संवत् 1007 चैत्र सूदी दूज शुक्रवार प्रात: 4 बजे श्री वरूण दरियाब देव(श्री झूले लाल)साकार रूप में प्रकट हुए। उस समय सिंध में मराव नाम का मुसलमान बादशाह का राज्‍य था। सिंध की राजधानी तब उटा नगर थी। बादशाह को जब इस तेजस्‍वी बच्‍चे के जन्‍म की जानकारी मिली , तो उसने अपने वजीर अह्या को नसरपुर भेजा। वजीर ने भक्‍त ठक्‍कर राय के घर नवजात बालक को पालने में देखा। कहा जाता है कि श्री अमर लाल जी ने पालने में ही जो चमत्‍कार दिखाए , उससे वह नतमस्‍तक हो गया। अह्या की प्रार्थना पर ही श्री अमर लाल ने नीले घोडे पर युवक के रूप में जाकर बादशाह का अहंकार भी दूर किया। आज भी सिंध में पूज्‍य अमरलाल जी के नाम से उडेरा लाल ग्राम में सुुंदर विशाल मंदिर और क्षमायाचक मराव बादशाह के द्वारा बनवाया गया किला मौजूद है।सावन भादो मास में अरोडवंशी पूज्‍य अमर लाल दरियाब देव जी को अपना इष्‍ट मानते हुए वरूण दरियाब देव का जल के किनारे पूजन भी करते हैं। राजस्‍थान निवासी अरोडवंशी भिति भादों बदी सात को उनका पूजन करते हैं। सिंधी भाई चैत्र सुदी दूज को सारे भारतवर्ष में पूज्‍य झूलेलाल का उत्‍सव दो तीन दिनो तक बडी धूमधाम से मनाते हैं , जिसे चेटी चंड कहा जाता है।(अरोड वेश के इतिहास की जानकारी प्रदान करने वाली ये चारो कडियां डॉ ओम प्रकाश छाबडा जी द्वारा लिखित अरोडवंश इतिहास में उपलब्‍ध जानकारी पर आधारित है!

http://arorakhatrisamaj.com/

21 टिप्‍पणियां:

  1. अरोड़ वंश के आदि प्रवर्तक महाराजा *श्री अरूट जी* के जन्म दिवस 30 मई 2017 की हार्दिक शुभकामनाएँ
    जतिंदर कुमार अरोड़ा
    महासचिव
    अरोड़ा महासभा (रज़ि) जालंधर

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  2. All Aroras must know their background. An effort should be made to make them aware and involve them in some philanthropic cause.

    Dr. J.S.Arora
    Amritsar

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  3. Good information we SHOULD be proud of our glorious past and work towards making our country STRONG.

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  4. Good information we SHOULD be proud of our glorious past and work towards making our country STRONG.

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  5. अरोड़ वंश के महाराजा *श्री अरूट जी* के जन्म दिवस 30 मई 2017 की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  6. अतिउत्तम जानकारी । अरोङा होने पर गर्व ।

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  7. हमें अरोड़ा होने पर गर्व है जानकारीके लिए धन्यवाद
    अरोड वशँ को महाराजा अरूट के वंशज होने
    पर गर्व है

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  8. हमें अरोड़ा होने पर गर्व है जानकारी के लिए धन्यवाद
    अरोड वशँ को महाराजा अरूट के वंशज होने
    पर गर्व है

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  9. I proud to aware about glorious past of "Arora " & thankful that I also a part of Arora's...

    Regards,
    Amit Arora
    Chandigarh.....63456
    Immy

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  10. It is matter of great pleasure that we are Arora. We are Suryavanshi. Lord Rama is our ancestor.

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  11. जय श्री राम!
    Sabhi Arora ka रघुवंशम् evam Shri Valmiki Ramayan padhna kartavya hai.

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